जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
कहानियां
कहानियों के अंतर्गत यहां आप हिंदी की नई-पुरानी कहानियां पढ़ पाएंगे जिनमें कथाएं व लोक-कथाएं भी सम्मिलित रहेंगी। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद, रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मालियो टोल्स्टोय की कहानियां

Articles Under this Category

देवता - डॉ॰ धनीराम प्रेम | ब्रिटेन

कजा ने जब से होश संभाला था, तभी से उसके कान में इन शब्दों की झँकार सुनाई दी थी कि ‘पति देवता है।’ उसकी बहिनों के विवाह हुए थे, तब उसकी माता ने उन्हें यही पाठ पढ़ाया था। उसकी सहेलियाँ जब ससुराल के लिए विदा हो रही थीं, तब भी उसने इन्हीं पवित्र वाक्यों को सुना था। वह समझने लगी थी कि 'पति देवता है।' यह एक महामन्त्र था और विवाह के सूत्र में बँधने वाली प्रत्येक बालिका के लिए उस मन्त्र की दीक्षा लेना और जीवन-पर्यन्त उसे जपते रहने की आवश्यकता थी। इस प्रकार के वातावरण में पलने वाली अन्य बालिकाएँ इस मन्त्र को सुनती थीं और फिर भूल जाती थीं। कुछ उसे सुन कर उस पर हँस देती थीं। इसलिए नहीं कि उनके मन में उपेक्षा या घृणा के भाव उत्पन्न हो जाते थे, बल्कि इसलिए कि वे उस मन्त्र को एक रूढ़ि समझती थीं; एक लकीर, जिसको पीटना वे प्रत्येक स्त्री के जीवन का कर्तव्य समझती थीं, कुछ के लिए इस मन्त्र का समझना कठिन था, उसी प्रकार जिस प्रकार एक अबोध ब्राह्मण के लिए गीता के श्लोक। परन्तु न समझने पर भी वह ब्राह्मण नित्य उनका जाप करता है, केवल इसीलिए कि उसे वह आवश्यक समझता है, इस लोक के लिए तथा परलोक के लिए उसी प्रकार ये बालिकाएँ भी बिना समझे अपने मूलमन्त्र का जाप करती थीं, केवल इसीलिए कि ऐसा करना इहलोक तथा परलोक के लिए आवश्यक बताया जाता था।
...

एक मिट्टी दो रंग - ओ. हेनरी

एक ही मकान के ऊपर-नीचे की कोठरियों में श्रीमती फिंक और श्रीमती केसिडी रहती थीं। साथ रहने से उन दोनों में दोस्ती हो गयी थी। एक दिन श्रीमती फिंक जब अपनी सहेली श्रीमती केसिडी के पास पहुँचीं, तो उस समय वह शृंगार कर रही थीं। शृंगार के बाद गर्व प्रदर्शन करते हुए श्रीमती केसिडी ने पूछा-- क्यों, मैं अच्छी लग रही हूँ न आज ?
...

पहला कहानीकार - रावी

एक समय था जब दुनिया के लोग बहुत सीधे-सादे और सत्यवादी होते थे। वे जो कुछ देखते थे, वही कहते थे और जो कुछ कहते थे वही करते थे।
...

भोर का शहर - मेधा झा

पछाड़ खाती तीव्र लहरों का काले पत्थरों से टकरा कर लौटना, बीच से एक श्यामल सी मोहक छवि का उभरना और उन्हीं चोट खाती लहरों के बीच से दिखना किसी की बेचैन आंखें। कौंधना प्रकृति के सानिध्य में बसा एक मनोरम स्थल और ॐ की ध्वनि का आना।
...

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश